नई दिल्ली। दिव्यांगों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दृष्टिबाधितों को न्यायिक सेवाओं में नौकरी के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में ऐसे उम्मीदवारों को कोटा न देने पर पिछले साल 3 दिसंबर को स्वतः संज्ञान मामले सहित छह याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने फैसले में कहा, दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा भर्तियों में किसी भी भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए और राज्य को एक समावेशी ढांचा बनाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए जस्टिस महादेवन ने कहा, कोई भी अप्रत्यक्ष भेदभाव, जिसके परिणामस्वरूप दिव्यांग व्यक्तियों को बहिष्कार झेलना पड़ता है, फिर चाहे वह अंकों का कटऑफ या प्रक्रियात्मक बाधा के माध्यम से हो, वास्तविक समानता को बनाए रखने के लिए इसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण विचार से वंचित नहीं किया जा सकता.
नियमों को किया रद्द
शीर्ष अदालत ने दृष्टिबाधित और आंखों में कम रोशनी वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में प्रवेश करने से रोकने वाले मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के कुछ नियमों को भी रद्द कर दिया। फैसले में कहा गया है कि दिव्यांगता के शिकार उम्मीदवार, जिन्होंने चयन प्रक्रिया में भाग लिया था, फैसले के आलोक में न्यायिक सेवा चयन के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं और यदि वे अन्यथा पात्र हैं तो उन्हें रिक्त पदों पर नियुक्त किया जा सकता है। पिछले साल 7 नवंबर को पीठ ने देशभर में न्यायिक सेवाओं में बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए।
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