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शिक्षण संस्थानों में खुदकुशी की जांच को तंत्र बनेगा

यूजीसी ने मसौदा तैयार किया है

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मसौदा नियम तैयार किए हैं, जिसमें नियम में याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई अधिकांश चिंताओं का ध्यान रखा गया है और इसे जनता से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित करते हुए अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।




नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आईआईटी और आईआईएम जैसे शिक्षण संस्थानों में खुदकुशी की घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों की जांच के लिए एक मजबूत तंत्र बनाया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की, जब बताया कि पिछले 14 महीने में आईआईटी और आईआईएम में खुदकुशी की 18 घटनाएं हुई हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है। हम इस स्थिति की जांच के लिए एक मजबूत तंत्र बनाएंगे।

संस्थानों ने आत्महत्याओं का ब्योरा नहीं दिया: याचिकाकर्ता की और से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों ने अदालत के आदेश के बावजूद अपने परिसरों में होने वाली आत्महत्याओं पर पूरा डाटा नहीं दिया है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शोध छात्र वेमुला की 17 जनवरी, 2016 को मौत हो गई थी, जबकि टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की छात्रा ताड़वी की 22 मई, 2019 को मौत हो गई थी। दोनों ही मामलों में जाति आधारित भेदभाव के आरोप लगाए गए थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह ने कहा कि 40 फीसदी विश्वविद्यालयों और 80 फीसदी कॉलेजों ने अपने परिसरों में समान अवसर प्रकोष्ठ नहीं बनाए हैं।

इसके बाद पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह और मामले में उपस्थित अन्य वकीलों से मसौदा नियमों पर सुझाव देने को कहा और यूजीसी को इन सुझावों पर गौर करने का निर्देश दिया।

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