इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की लिस्टिंग व्यवस्था में अचानक बदलाव किया गया है। अब काजलिस्ट में दिनभर के सभी मुकदमे एक सीरियल में होंगे। फरवरी माह तक सीरियल नंबर एक से 2999 तक दर्ज मुकदमे फ्रेश, तीन हजार से 7999 तक तक अनलिस्टेड केस और सीरियल नंबर आठ हजार दर्ज मामले प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र होते थे। ऐसे में किसी कोर्ट में या कॉरिडोर में मौजूद अधिवक्ता सीरियल नंबर से जान जाता था कि किस कोर्ट में क्या चल रहा है। नया तरीका तीन मार्च से लागू कर दिया गया है।
एडवोकेट महेश शर्मा कहते हैं कि अब किसी भी कोर्ट में क्या चल रहा है, यह जानने के लिए पूरी काजलिस्ट याद रखना पड़ेगा, जो काफी मुश्किल कार्य है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव आशुतोष त्रिपाठी ने कहा कि बिना किसी पूर्व सूचना के मुकदमों की लिस्टिंग का नया तरीका वकीलों को फिलहाल परेशान करेगा। इस सिस्टम को समझने में और इसके अनुसार ढलने में समय लगेगा। आशुतोष त्रिपाठी ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष/महासचिव से इस पर अविलंब संज्ञान लेने का आग्रह किया है।
प्राइवेट प्रैक्टिस वाले डॉक्टरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई जल्द पूरी करें
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पतालों के डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक का उल्लघंन करने वालों के खिलाफ चल रही अनुशासनात्मक कार्रवाई पूरी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कार्रवाई की स्थिति की जानकारी मांगी है। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने डॉ अरविंद गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट के निर्देश पर प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई है। इस मामले में प्रदेश के 37 डीएम ने रिपोर्ट दी है, सरकार उसका परीक्षण कर रही है।
ऐसे में कुछ समय दिया जाए ताकि कृत कार्रवाई की जानकारी दी जा सके। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि कार्रवाई की जा रही है लेकिन कार्रवाई किस स्थिति में है और कितने डॉक्टरों पर ऐक्शन लिया गया है, इसका कोई जिक्र नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कार्रवाई की जाए ताकि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों को एक संदेश जाए और वे प्राइवेट प्रैक्टिस करने से बचें। इसलिए त्वरित कार्रवाई की जाए और कृत कार्रवाई की जानकारी दी जाए। कोर्ट ने सरकार से कहा था कि जब सरकारी डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक है तो वे प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होम में प्रैक्टिस कैसे कर रहे हैं।
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