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एसआईटी का फर्जी निदेशक बनकर वसूली करने वाले हेडमास्टर समेत दो शिक्षक बर्खास्त

ज्ञानपुर (भदोही)। एसआईटी का फर्जी निदेशक बनकर कई साल से शिक्षकों से वसूली करने वाले हेडमास्टर अनुराग तिवारी समेत दो शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया। दोनों शिक्षकों ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और बीएड की फर्जी मार्कशीट, डिग्री लगाकर नौकरी हासिल की थी। बर्खास्त हेडमास्टर व शिक्षक आजमगढ़, वाराणसी के रहने वाले हैं।



प्राथमिक विद्यालय तुलापुर रोही के हेडमास्टर अनुराग तिवारी निवासी ग्राम एवं पोस्ट बरदह तहसील लालगंज आजमगढ़ और कंपोजिट विद्यालय कलिकमवैया के सहायक अध्यापक शैलेंद्र कुमार निवासी ग्राम भटौली पोस्ट हरहुआ वाराणसी का प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए।

दोनों के अनुक्रमांक पर दूसरे विद्यार्थियों का नाम अंकित मिला। सत्यापन रिपोर्ट और खंड शिक्षा अधिकारी की आख्या पर बीएसए भूपेंद्र नारायण सिंह ने दोनों को बर्खास्त कर दिया। मुकदमा दर्ज कराते हुए रिकवरी के निर्देश भी दिए गए हैं। बीएसए के मुताबिक, हेडमास्टर एसआईटी का फर्जी निदेशक बनकर प्रदेश भर में शिक्षकों से वसूली करता था।

3 साल में 22 शिक्षक बर्खास्त

तीन साल में फर्जी डिग्री पर नौकरी करने वाले 22 शिक्षकों की सेवा समाप्त की है। 2024 में 13 बर्खास्त हुए। सभी का प्रमाण पत्र आचार्य, शास्त्री, बीएड, यूपी बोर्ड के प्रमाणपत्र या तो फर्जी मिले या दूसरे विद्यार्थी के नाम पर अंकित मिले। इसके पहले दो सालों में नौ की सेवा समाप्त की गई थी।

छह लाख की धांधली में भी आया था नाम

प्राथमिक विद्यालय तुलापुर का हेडमास्टर अनुराग तिवारी ने विभाग को ही अपने चक्रव्यूह में उलझा दिया था। सेवा समाप्ति आदेश में बीएसए ने Image इसका जिक्र भी किया है। बीएसए ने कहा कि वह एसआईटी का फर्जी निदेशक बनकर जिले में ही नहीं, बल्कि दूसरे जनपदों में शिक्षकों को मूर्ख बनाया करता था। विद्यालय में एमडीएम में करीब छह लाख की धांधली में भी उसका नाम आया था। उसकी इस करतूत से विभाग की छवि धूमिल हुई। यह शिक्षक आचरण नियमावली के विरुद्ध है।

पहले भी पकड़ी गई गड़बड़ी

जिले में 885 प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और कंपोजिट विद्यालय संचालित हैं। इसमें चार हजार से अधिक शिक्षकों की तैनाती है। शासन स्तर से जरूरत के हिसाब से शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है। पिछले पांच से छह साल में नियुक्ति से लेकर अन्य गतिविधियां ऑनलाइन होने से प्रमाणपत्र की खामियां उजागर हो जाती हैं, लेकिन डेढ़ से दो दशक पूर्व की नियुक्ति प्रक्रिया कागजों में ही चलती थी। विश्वविद्यालय और बोर्ड स्तर पर होने वाले सत्यापन में भी झोल कर दिया जाता, फर्जी और दूसरे के प्रमाणपत्र पकड़ में नहीं आते। प्रेरणा पोर्टल पर सभी अभिलेख ऑनलाइन होने के बाद बड़ी संख्या में शिक्षकों के प्रमाणपत्र संदिग्ध मिले। बेसिक शिक्षा विभाग ने विवि और बोर्ड से अभिलेखों का सत्यापन कराया।

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