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1200 राज्य कर अधिकारियों में 1000 पर निलंबन की तलवार

लखनऊ। राज्य कर विभाग में लागू एमनेस्टी योजना करीब 1000 अधिकारियों की नौकरी के लिए खतरा बन गई है। खंड के प्रत्येक अधिकारी को रोजाना पांच व्यापारियों को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य दिया गया है। शासन ने लक्ष्य पूरा न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

प्रदेश में राज्य कर में 436 खंड हैं, जिनमें लगभग 1200 अधिकारी तैनात हैं। बमुश्किल पांच से दस फीसदी अधिकारी ही रोजाना पांच व्यापारियों को इस योजना में जोड़ने में सफल हो रहे हैं। लक्ष्य पूरा न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश प्रमुख

सचिव एम. देवराज ने दिए हैं।

इस संबंध में जोनल एडिशनल कमिश्नरों द्वारा जारी पत्र में साफ कहा गया है कि हर हाल में रोजाना पांच केस एमनेस्टी में शामिल करने ही हैं। इसे पूरा न करने वाले अधिकारी का नाम निलंबन के लिए भेज दिया जाएगा।

इसी के साथ खंडों में तैनात 1200 अधिकारियों में से लगभग

1000 पर निलंबन का खतरा मंडरा रहा है। ऐसा पहली बार होगा जब किसी सरकारी विभाग के 90 फीसदी से ज्यादा अधिकारियों पर एकसाथ कार्रवाई होगी।

ये है एमनेस्टी योजना

एमनेस्टी योजना कारोबारियों को जीएसटी मामलों में व्याज और जुर्माने से राहत दे रही है। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18, वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के मामलों में राहत मिलेगी। इन तीन वित्त वर्षों के मामलों को एमनेस्टी योजना में लाने से कारोबारियों को केवल टैक्स देना पड़ेगा। ब्याज व पेनाल्टी से छूट मिल जाएगी। प्रदेश में लगभग 1.92 लाख व्यापारी एमनेस्टी योजना के दायरे में हैं। उन पर विभाग के 7,816 करोड़ रुपये बकाया है। टैक्स चुकाने पर 5,150 करोड़ रुपये के ब्याज और 1,213 करोड़ रुपये पेनाल्टी की छूट मिलेगी।

स्वैच्छिक होने की वजह से अभी तक आए 25 हजार व्यापारी

एमनेस्टी योजना स्वैच्छिक है। व्यापारियों को इसमें शामिल करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि लगभग 1.92 लाख केसों में से अभी तक करीब 25 हजार ने ही योजना में अपील के लिए आवेदन किया है। 31 मार्च अंतिम तारीख है। सबसे ज्यादा विवादों के मामले लखनऊ जोन में हैं, जहां करीब 22 हजार केस हैं। दूसरे नंबर पर 19 हजार केस के साथ वाराणसी है। तीसरे नंबर पर 18,500 केस लेकर गाजियाबाद है। चौथे नंबर पर 14 हजार केस कानपुर में और पांचवें पर 13,500 केस मुरादाबाद में हैं। छठे स्थान पर 10 हजार मामले गोरखपुर के हैं।

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