इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एटा के विशेष न्यायाधीश डकैती प्रभावित क्षेत्र पद पर कार्यरत अली रजा के वेतन खाते से प्रत्येक माह 20 हजार रुपये उनकी पत्नी को गुजारा भत्ते के रूप में भेजने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश सोनभद्र को तीन सप्ताह में 50 हजार रुपये वाद खर्च सहित पूरा बकाया छह माह में भुगतान सुनिश्चित कराने का भी निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने शबाना बानो की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि एक न्यायिक अधिकारी जिसे पत्नी के कानूनी अधिकारों की जानकारी है, उसने गुजारा भत्ता देने की बजाय कानूनी प्रक्रिया में उलझाए रखा। पारिवारिक न्यायालय के आदेश के बावजूद पत्नी को गुजारा भत्ते का भुगतान नहीं किया। ऐसा करके पति ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। पत्नी के साथ कानूनी लड़ाई जारी रख न्याय में देरी की। पत्नी सहानुभूति पाने की हकदार है। कोर्ट ने कहा पत्नी अर्जी दाखिल करने की तारीख से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है और याचिका में गुजारा भत्ता बढ़ाने की भी मांग की गई थी।
दोनों का निकाह चार मई 2002 को हुआ था। याची का कहना था कि शादी के समय अली रजा सिविल जज थे, शादी में 30 लाख रुपये खर्च हुए। इंडिका कार भी दी। फिर भी 20 लाख अतिरिक्त मांगे। दोनों के चार बच्चे (तीन लड़की एक लड़का) भी हैं, जो पति के साथ हैं। पति ने याची को 18 नवंबर 2013 को घर से निकाल दिया और दो दिसंबर 2013 को तलाकनामा भेज दिया। याची ने झूठे आरोपों का डाक से जवाब भी भेजा। बाद में सीआरपीसी की धारा 125 में परिवाद दाखिल किया।कोर्ट ने कहा कि मुकदमे में 15 जनवरी 2014 से 64 बार सुनवाई की तारीख लगी लेकिन पति नोटिस के बावजूद कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ। मामला मिडियेशन में भी भेजा गया। पति ने 35 बार सुनवाई टलवाई, अंतरिम भत्ता की अर्जी पर 47 तारीख लगी। पति निष्पादन अदालत में हाजिर नहीं हुआ और न ही भत्ते का भुगतान किया। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय की भी अदालती कार्यवाही को लेकर आलोचना की।
0 टिप्पणियाँ