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रसोइयों को पांच महीने से नहीं मिली पगार, कब खत्म होगा इंतजार

आजमगढ़, कहने के लिए उनकी ड्यूटी सिर्फ दो घंटे की होती है, लेकिन पूरा दिन स्कूल में ही बीत जाता है। परिषदीय विद्यालयों में तैनात रसोइयों को स्कूल का ताला खोलने और बंद करने से लेकर चपरासी, चौकीदार और सफाईकर्मी तक की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। सिलेंडर है तो ठीक वरना लकड़ी पर भोजन तैयार करना पड़ता है। इसके बाद भी दुत्कार झेलनी पड़ती है। जब तब नौकरी से निकालने की धमकी मिलती है। पांच माह से वे मानदेय का इंतजार कर रही हैं।

7000 रसोइयों की तैनाती है जिले के परिषदीय विद्यालयों में

2000 रुपये मानदेय रसोइयों को मिलता है प्रत्येक माह।

250 पुरुष रसोइया भी परिषदीय विद्यालयों में हैं तैनात।

कलक्ट्रेट के सामने अंबेडकर पार्क में ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में रसोइयों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। अखिल भारतीय मध्याह्न रसोइया महासंघ के अध्यक्ष सुरेंद्रनाथ गौतम और मनती देवी ने बताया कि परिषदीय विद्यालयों में मिड डे मील बनाने में बहुत कम पढ़ी-लिखी महिलाओं और पुरुषों को लगाया गया है। वे अपने अधिकारों के प्रति जागरुक नहीं होते। इनका काम खाना बनाने का है, ड्यूटी सिर्फ दो घंटे की होती है। मगर इन लोगों को सुबह विद्यालय खुलने से लेकर शाम तीन बजे बंद होने तक बैठाया जाता है। कई जगह सुबह विद्यालय खोलने के बाद झाड़ू लगवाई जाती है। फिर खाना बनवाया जाता है। खाना बनाने के अलावा अन्य काम करने से मना करने पर प्रधानाध्यापक नौकरी से निकालने की धमकी देते हैं। रसोइया बहुत गरीब होती हैं। इसलिए मजबूरी में अतिरिक्त काम करना पड़ता है। उन्हें हर माह दो हजार रुपये मानदेय मिलता है। बेसिक शिक्षा विभाग मानदेय की राशि सीधे खाते में भेजता है। मानदेय मिलने में कई दिन लग जाते हैं। कई बार आधा वर्ष बीत जाता है। कई रसोइयों का मानदेय जुलाई से अटका है। इसके बाद भी उन्हें हर दिन विद्यालय आना पड़ता है। इस संबंध में स्थानीय अधिकारियों से कई बार बात की गई, लेकिन हर बाद भरोसा देकर टाल दिया जाता है।

विद्यालय बंद रहने पर ही छुट्टी

संगठन की प्रदेश महामंत्री संगीता यादव, फूला, शशिकला ने बताया कि वे वर्ष 2010 से रसोइया का काम कर रही हैं। उनसे लगातार काम लिया जाता है। एक भी छुट्टी नहीं मिलती। छुट्टी मांगने पर सीधे कह दिया जाता है कि कल से मत आइएगा। रसोइया सरिता, सुराती देवी ने बताया कि उन लोगों को 11 महीने बिना अवकाश के काम करना पड़ता है। विद्यालय सार्वजनिक अवकाश में बंद रहेगा, तभी छुट्टी मिल पाती है। आकस्मिक छुट्टी जैसी व्यवस्था नहीं है। अगर जरूरी कारण से रसोइया चली गई तो उसे सबके सामने बुरी तरह डांटा जाता है।

त्योहार बाद मिलता है मानदेय

चंपा, तीसनौता, विशुन देवी ने बताया कि पगार समय से नहीं मिलती। त्योहारों पर तैयारी फीकी रहती है। कई बार मांग की गई कि त्योहारों से कुछ दिन पूर्व मानदेय दे दिया जाए। ज्यादा मांग करने पर विभाग सक्रिय भी होता है लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। त्योहार के 15 दिन बाद ही कुछ मानदेय मिल पाता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय अधिकारियों की संवेदहीनता के चलते उन्हें त्योहार पूर्व मानदेय नहीं मिल पाता। बोलीं, अभी होली आ रही है। जनवरी में बजट आ गया है, लेकिन अब तक अफसरों की कलम नहीं चल रही है। रसोइयों की तरफ से लगातार इसकी मांग की जा रही है। तारा चौहान ने बताया कि उन्हें खाना बनाने में कोई दिक्कत नहीं है। परेशानी सिर्फ समय से मानदेय नहीं मिलने की है।

प्रधान नहीं दिलवाते लाभ

कंचन मौर्या, पानमती, रमावती ने बताया कि उन्हें आयुष्ममान कार्ड और पीएम आवास नहीं मिला। ग्राम प्रधान भी नहीं सुनते। रसोइया इतनी पढ़ी-लिखी नहीं हैं कि खुद की सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए दौड़भाग कर सकें। किसी से पैरवी के लिए कहते हैं, तो उसे भी रुपयों की जरूरत होती है। इतना पैसा नहीं है कि देकर काम करा सकें। जानकारी के अभाव में पात्र होने के बाद भी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। प्रधान सिर्फ अपने चहेतों को ही योजनाओं का लाभ दिलाते हैं।

काम 11 महीने, मानदेय 10 माह का

सीमा हेंगापुर प्राथमिक विद्यालय में रसोइया है। बोलीं, रसोइया 11 महीने काम करती हैं लेकिन उन्हें मानदेय केवल दस महीने का मिलता है। उसका भी कोई समय तय नहीं होता। खुद उनका जुलाई से अब तक का मानदेय रूका है। फरवरी बीतने को है लेकिन पता नहीं है कि कब बकाया मानदेय मिलेगा। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त आय के लिए जहां प्रयास करते हैं, वहां भी पूरा समय मांगा जाता है। मात्र दो हजार रुपये में परिवार चला पाना मुश्किल है।

बच्चों के नामांकन का दबाव

ज्ञानती देवी ने बताया कि परिषदीय विद्यालयों में बच्चों का नामांकन कराने के लिए उन पर भी दबाव डाला जाता है। स्थानीय होने के नाते प्रधानाध्यापक ज्यादा से ज्यादा संख्या में बच्चों का प्रवेश कराने के लिए कहते हैं। रसोइया इसके लिए पूरा प्रयास भी करती हैं। लेकिन इसमें कमी रहने पर उन्हें विद्यालय से बाहर कर देने की बात कह दी जाती है। जबकि रसोइयों की केवल खाना बनाने की जिम्मेदारी होती है। रामदुलारे गोंड ने बताया कि विद्यालयों में बच्चों के अनुपात में रसोइयों की तैनाती नहीं है। 1 से 25 बच्चों के ऊपर एक रसोइया है तो 26 से 100 बच्चों की संख्या के ऊपर दो की ही तैनाती है। 101 से 200 बच्चों के लिए मात्र तीन रसोइयों की व्यवस्था है।

आंगनबाड़ी केंद्र का भी बनाती हैं खाना

लालती ने बताया कि रसोइयों से परिषदीय विद्यालयों के बच्चों के साथ वहां चल रहे आंगनबाड़ी केंद्र के भी बच्चों का खाना बनवाया जाता है। मानदेय केवल परिषदीय विद्यालय का मिलता है। आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों के लिए मेहनत करने की उन्हें फूटी कौड़ी नहीं दी जाती जबकि आंगनबाड़ी केंद्र के लिए राशन अलग से आता है। ऐसे में अलग से मेहनताना की व्यवस्था होनी चाहिए।

लकड़ी का चूल्हा भी फूंकती हैं

चिंता देवी, लक्ष्मीना और कौशल्या ने बताया कि रसोइयों को लगातार गैस सिलेंडर या लकड़ी के चूल्हे के पास बैठकर मिड डे मील बनाना पड़ता है। विद्यालयों में गैस सिलेंडर बचाने का प्रयास किया जाता है। कई स्कूलों में सैकड़ो रोटियां लकड़ी के चूल्हे पर बनानी पड़ती हैं। दुर्घटना की स्थिति में राहत का कोई इंतजाम नहीं है। कई घटनाएं पूर्व में हो चुकी हैं। रसोइयों का दस लाख तक का दुर्घटना बीमा होना चाहिए।

छलकी पीड़ा

-रसोइयों की स्कूलों में दो घंटे ड्यूटी तय है। मगर उन्हें तीन बजे तक बैठाया जाता है।




-सुरेंद्र गौतम




-पहले एक हजार मानदेय, अब दो हजार रुपये मिलते हैं। इतने में गुजारा कैसे होगा।




-संगीत यादव




- त्योहारों पर मानदेय नहीं मिलता। बच्चों की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं। उनमें उदासी रहती है।




-चंपा देवी




कभी-कभी लकड़ी पर भोजन बनाना पड़ता है। दुर्घटना बीमा नहीं कराया गया है।




-तारा चौहान




-गरीबी में भी पक्की छत नसीब नहीं हो पाई। पीएम आवास के लिए सुनवाई नहीं हो रही है।




-कंचन मौर्या




-रसोइयों से 11 माह काम लिया जाता है मगर दस माह का मानदेय मिलता है।




-सीमा




-स्कूल में सफाई करने के साथ बच्चों को भी बुलाना पड़ता है। नौकरी छीनने की धमकी दी जाती है।




-ज्ञानती देवी




-हमें आकस्मिक छुट्टी नहीं मिलती। किसी के यहां कार्यक्रम या गमी में भी शामिल नहीं हो पाते।




-सरिता




-रसोइया आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों का भी खाना बनाती हैं। उसका पारिश्रमिक नहीं मिलता है।




-लालती




-स्कूल में बच्चों की संख्या कम होने पर रसोइयों को निकालने की धमकी मिलती है।




-रामदुलारे गोंड




- 20 जनवरी को ही बजट आया है, मगर अब तक मानदेय का भुगतान नहीं किया गया।




-चिंता देवी




-रसोइयों से ही चौकीदार, चपरासी का भी काम लिया जाता है। इससे भोजन बनाने में दिक्कत आती है।


-कौशिल्या देवी


सुझावः
  1. नियमित मानदेय का भुगतान किया जाए ताकि परिवार के भरण-पोषण के लिए किसी से कर्ज न लेना पड़े।
  2. लकड़ी पर भोजन बनाने के लिए मजबूर न किया जाए। अतिरिक्त गैस सिलेंडर रखा जाए ताकि गैस खत्म होने पर दिक्कत न हो।
  3. स्कूल में सिर्फ एमडीएम बनाने का ही काम लिया जाए। सफाई सहित चपरासी का काम न लिया जाए। समय से छुट्टी दी जाए।
  4. दुर्घटना बीमा कराया जाए। दुर्घटना में मौत होने पर बच्चों की परवरिश के लिए आर्थिक मदद की व्यवस्था हो।
  5. निर्धारित ड्यूटी से अधिक समय तक स्कूल में न रोका जाए। छात्रों को घर से बुलाने के लिए रसोइयों का न भेजा जाए।


शिकायतें :
  1. इतने कम मानदेय में परिवार के भरण-पोषण में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बच्चों को पढ़ाने का सपना पूरा नहीं हो पाता।
  2. हर वक्त नौकरी जाने का खतरा बना रहता है। हेडमास्टर बात-बात पर निकालने की चेतावनी देते हैं। कोई सुनवाई नहीं होती।
  3. मानदेय का भुगतान छह-छह महीने पर होता है। इससे आसपास के लोगों से उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  4. बिना अग्निसुरक्षा के भोजन बनाना पड़ता है। अगलगी की घटनाएं होने की आशंका बनी रहती है।
  5. लकड़ी जलाकर एमडीएम बनाना पड़ता है। आंगनबाड़ी के बच्चों का भी भोजन बनवाया जाता है। इसका पारिश्रमिक नहीं मिलता।


बोले जिम्मेदार :


रसोइयों को जल्द मिलेगा मानदेय


रसोइयों के खाते में जल्द मानदेय भेजा जाएगा। प्रधानाध्यापकों को उनसे अतिरिक्त काम न लेने के लिए निर्देशित किया जाएगा। स्कूलों में गैस सिलेंडर पर ही खाना बनवाने का निर्देश है। अगर कहीं लकड़ी पर भोजन बनते पाया गया तो संबंधित प्रधानाध्यापक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।




राजीव पाठक, बेसिक शिक्षा अधिकारी।

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