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शिक्षकों का पेंशन भीख नहीं, अधिकार है

गोरखपुर |

शिक्षक व्यवस्था परिवर्तन की ताकत रखते हैं। शिक्षक देश के भविष्य को सुनहरा बना सकता है। पर आज कुछ शिक्षक अपने हितों तक ही सीमित है। यही कारण है कि सामूहिक संघर्ष कमजोर हो गया है। इसका दुष्परिणाम भी शिक्षक ही झेल रहा है। पुरानी पेंशन बुढ़ापे की लाठी है परंतु इससे शिक्षक या कर्मचारी वंचित कर दिए गए हैं। पेंशन भीख नहीं अधिकार है। इसे पाने के लिए राष्ट्रीय संघर्ष की आवश्यकता है, जो कुछ भी मिला है वो संघर्ष के बल पर ही मिला है।

यह बातें विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने कही। वह मंगलवार को एमएसआई इंटर कालेज में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई के मंडलीय सम्मेलन व शैक्षिक विचार गोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रो. एसपी त्रिपाठी ने कहा कि आज वे देश विकास के शिखर पर है। जिन्होंने शिक्षा व शिक्षकों को समाज में सर्वोपरि स्थान व सम्मान दिया। वह देश जहां शिक्षा का नियमन, प्रशासन व संचालन शिक्षाविद द्वारा होता है वह उन्नति के शिखर पर है। जबकि हमारे देश में शिक्षा पर व्यय लगातार कम होता जा रहा है। इसीलिए हमारी स्थिति इतनी बदहाल है।

शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को आंदोलन से हासिल करना होगा। जिसका नेतृत्व शिक्षक वर्ग बखूबी कर सकता है, क्योंकि आने वाली पीढ़ी उसके हाथ मे है। संत विनोबा डिग्री कालेज देवरिया के पूर्व प्राचार्य डा. असीम सत्यदेव कहा कि आज शिक्षा पूरी तरह बाजार के हवाले है। संगोष्ठी की अध्यक्षता मंडल अध्यक्ष सत्यपाल सिंह व संचालन मंडल मंत्री दुर्गेश दत्त पांडेय ने किया इस दौरान प्रांतीय मंत्री देवेंद्र प्रताप सिंह गौतम व डा. अजय कुमार पांडेय, जेपी नायक, राम बहाल त्रिपाठी, डा. शोभित श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।

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