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शिक्षामित्रों के मामले में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अखबारों ने भ्रामक और मनगढ़ंत छापा है!, पढें रबीअ बहार की यह पोस्ट

*शिक्षामित्रों के मामले में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अखबारों ने भ्रामक और मनगढ़ंत छापा है!*


शिक्षामित्र भोला शुक्ल बनाम यूपी सरकार मामले में कल आदेश जारी हुआ। सब से पहले आजतक पोर्टल ने खबर लगाई..


*UP: 69,000 शिक्षामित्रों पर SC का आदेश- 6 हफ्ते में शुरू करें भर्ती प्रक्रिया*


फिर न्यूज़ स्टेट पर खबर चली *SC ने शिक्षामित्रों पर UP सरकार को दिया निर्देश, जल्द पूरी करें भर्ती*






फिर हिंदुस्तान ने भी आजतक की खबर कॉपी पेस्ट कर दी


*यूपी 69000 शिक्षक भर्ती मामला : शिक्षामित्रों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, 6 हफ्ते में शुरू करें भर्ती प्रक्रिया*

इस तरह सभी खबरों और चैनलों ने बिना केस को जाने समझे मनगढ़ंत खबर छाप डाली।


क्या इसे अखबारों में विधि संवाददाताओ की कमी है ये माना जाए या सरकार की चापलूसी में सरकार के मनमाफिक खबर लिखने के रिवाज़ के रूप में देखा जाय? विचारणीय है।

*क्या है मामला..*


भोला शुक्ल की याचिका में कोर्ट से मांग की गई थी कि शिक्षा मित्रों को अपग्रेड वेतन दिया जाए जैसा कि केंद्र से 38870 रुपये तय है और 2018 में जारी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा था कि ये लोग शिक्षकों के समान वेतन नहीं चाहते हैं बल्कि इनका वेतन अपग्रेड कर दिया जाए।

*कोर्ट ने वास्तव में क्या कहा...*

इसके जवाब में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि शिक्षामित्रों को 3500 रुपये मिलते थे अब इन्हें दस हज़ार रुपये दिए जा रहे हैं। कोर्ट ने भी सरकार की बात मानते हुए कहा


चूँकि शिक्षा मित्र नियमित रूप से नियुक्त नहीं थे और


न ही वे अर्हताधारी शिक्षक है इसलिये शिक्षक के समान वेतन पर उनका विस्तार करना उचित नहीं होगा जैसा कि वर्तमान में उनके लिए मांग पेश की जा रही है। हालांकि आंतरिक मामले पर गौर करते हुए राज्य को दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं।


आगे लिखा कि कोर्ट को यह समझाया गया कि 25 जुलाई 2017 को आये यूपी सरकार बनाम आनंद कुमार यादव वाले फैसले के बाद से 69000 शिक्षकों की चयन प्रक्रिया की गई थी जिसमे 41500 शिक्षकों का चयन कर लिया गया है। इस चयन प्रक्रिया में कोर्ट के समक्ष ये साफ नहीं किया गया है कि उपलब्ध शिक्षामित्रों में से कितने शिक्षामित्र चयनित हुए हैं या नहीं।


(*वास्तव में सरकार ने कोर्ट को गलत जानकारी दी है क्योकि 68500 शिक्षको की एक भर्ती पूरी हो चुकी है और उसमें 41500 शिक्षक भर्ती भी हो चुके है, जिनमे उच्च मानदण्डों वाली भर्ती परीक्षा के कारण मात्र 7000 शिक्षामित्रों का चयन हुआ है। और 69000 भर्ती में परीक्षा के बाद 65% पासिंग मार्क्स लगा कर शिक्षामित्रों को भर्ती होने से रोका गया है। ये भर्ती भी न्यनतम पासिंग मार्क्स का मामला कोर्ट में होने के चलते रुकी हुई है वरना अब तक कभी की हो चुकी होती*)


(खबर ये छापना थी देखिये ...)


कोर्ट ने आदेश दिया *राज्य सरकार को बड़ी संख्या में शिक्षामित्रों का चयन जल्दी से जल्द पूरा करना चाहिये। ताकि सभी योग्य शिक्षामित्र जो चयनित होने के आकांक्षी हैं नियमित शिक्षक के रूप में चयनित होने की प्रतिस्पर्धा का लाभ उठा सकें जैसा कि पहले से उनके लिए लाभ लेने का विस्तार किया गया था।*


(लेकिन छपी ये... जिस से शिक्षामित्रों का अब वास्ता ही नहीं है।)


इसलिए कोर्ट राज्य सरकार को ये निर्देश जारी करता है कि चयन प्रक्रिया के लिए रिक्तियों की वास्तविक संख्या का आकलन करने के बाद, जितनी जल्दी हो सके अधिमानतः आज से छह सप्ताह से लेकर छह महीने के भीतर चयन प्रक्रिया का समापन करे।


सभी शिक्षामित्र जो यद्द्पि योग्यता रखते हैं उन्हें चयनित होने का अवसर मिले जैसाकि 25 जुलाई 2017 को आये यूपी सरकार बनाम आनंद कुमार यादव वाले फैसले के पैरा 33 में उन्हें लाभ दिया गया है।


ये राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वो वेटेज का क्या फॉर्मूला अपनाती है कोर्ट का सुझाव है कि 4 साल अनुभव वाले शिक्षामित्रों को एक फीसदी वेटेज देने का फार्मूला अपनाया जा सकता है।


©रबीअ बहार

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