ये आदेश अपने आप मे कई सवाल खड़े करता है -
- ये ऐप किसके फोन में चलेगा क्या विभाग ने शिक्षको को इसके लिए फोन दिया है।
- इसके नेट का पैसा शिक्षक वहन करेगा या विभाग कोई मद देगा।
- क्या किसी अन्य विभाग में ऐसी व्यवस्था है या सिर्फ शिक्षको के लिए।
- उस ऐप को लागू करने का क्या उद्देश्य है, क्या विभाग को लगता है कि शिक्षक विद्यालय नही जाते।
- जिसके फोन में ऐप है अगर उसे ही देर हो गयी तो क्या होगा।
- अगर फोन चार्ज नही हुआ तो क्या होगा?
एक बात पर गौर करना चाहिए कि -
सुधार शिक्षको पर शख्ती करके नही बल्कि उनका सहयोगी बन कर लाया जा सकता है। कोई भी अधिकारी शिक्षक का सहयोगी नही बनना चाहता सब शासक ही बनना चाहते है ।
अभी हाल में ही आप सबने देखा कि एक अधिकारी महोदय ने सही था कि-
जैसे पूरा विभाग अपने पायलट के सहयोग के लिए कार्य करता है वैसे ही शिक्षक भी शिक्षा विभाग का पायलट होता है सबको उसका सहयोग करना चाहिए पर ऐसा होता नही है ।
मिर्जापुर में तो और ही गजब का आदेश आया है -
कि सभी शिक्षक हर दिन के न्यूज़ पेपर के साथ फोटो लेंगे और उस फ़ोटो को विभिन्न अधिकारियों को भेजेंगे। अरे भाई गांव में समय से पेपर पहुंचाएगा कौन और उसके पैसे कौन देगा सबसे बड़ी बात जब पेपर आएगा तो पढ़ा भी जाएगा कि नही।
कोई भी नीति बनाने से पहले व्यवहारिक समस्या का ध्यान रखना ही चाहिए नियम वो लोग बताते और बनाते है जो शहर में रहते है और सहर में ही कार्यालय होता है वो भूल जाते है कि प्राइमरी के स्कूल ऐसी ऐसी जगह है जंहा तक पहुंचने का कोई साधन होता ही नही हैं। और है भी तो कैसे कैसे हालात है।
वैसे इस नियम को लागू करने के साथ साथ एक लाइन और जोड़ दिए जाएं कि विभागीय अधिकारी भी प्रतिदिन किसी एक स्कूल में पहुंच कर शिक्षको के साथ प्राथना में शामिल होंगे और सेल्फी उच्च अधिकारियों को भेजेंगे वही उनकी उपस्थिति मानी जायेगी फिर पता चलेगा कि कौन पहुंचता है विद्यालय और तब बनेंगे सही नियम।
वैसे इस नियम को लागू करने के साथ साथ एक लाइन और जोड़ दिए जाएं कि विभागीय अधिकारी भी प्रतिदिन किसी एक स्कूल में पहुंच कर शिक्षको के साथ प्राथना में शामिल होंगे और सेल्फी उच्च अधिकारियों को भेजेंगे वही उनकी उपस्थिति मानी जायेगी फिर पता चलेगा कि कौन पहुंचता है विद्यालय और तब बनेंगे सही नियम।
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